सौंदर्य_ मेरे होने से तेरा होना है?
जिस दिन सादगी श्रृंगार हो जाएगी,
हर आइने की हार हो जाएगी।
सौंदर्य की ओर आकर्षण सहज है, उस पर भी स्त्री का सौंदर्य तो संसार का आधार है। यही तो वह माया है जिसने मुझे और आपको बांध रखा है, अन्यथा तो हम सब स्वामी चिन्मयानंद होते।
किन्तु क्या स्त्री का सौंदर्य, सच में माया है? कदापि नहीं। ' शक्ति'
अर्थात सती ( या पार्वती) के सौंदर्य का बखान करते तो वेद- पुराण नहीं थकते, किन्तु क्या वो कभी शिव के शिवत्व में बाधा बनीं? कभी नहीं। वरन् शिव तो शक्ति के बिना शव से हैं। सौंदर्य का आशय गोरेपन, चंचल आंखों, पतली कमर या किसी हॉलीवुड मॉडल के रूप से ही नहीं है। एक स्त्री का कोमल मन, सरल हृदय, श्रद्धा भाव, समर्पण, सहनशीलता, शुद्ध चरित्र एवं स्वाभिमान भी बेहद मायने रखते हैं।
सौंदर्य के पैमाने मेरे या आपके लिए अलग-अलग हो सकते है। हम भारतीयों में गोरे रंग का बहुत मान है (हो भी क्यों न, इतने सालों तक हमने गोरों की ग़ुलामी ही तो की) । यदि आप गोरी हैं तो क्या बात है और नहीं हैं तो 'हल्दी- बेसन का उबटन लगाओ, धूप में मत निकलो' और ना जाने क्या-क्या। बाज़ारों में गोरे होने की क्रीम है जिन्हें हिरोइनों से प्रचारित करवा कर धड़ल्ले से बेचा जाता है। वहीं अमेरिका में सावलें होने की क्रीम बिकती है। अट्ठारहवीं सदी तक तो अमेरिका में भी सांवलेपन को पसंद नहीं किया जाता था लेकिन अब वहां के लोग आर्टिफिशियल टैनिंग करवाते हैं, बीचेस पे लेट कर सन-बाथ (Sun-bath) लेते हैं ताकि उन्हें सांवले रंग मिल सके । संभवतः हममें से अधिकांश को ये सुंदर लगें-
अरे वाह! लंबा कद, मॉडल जैसी फ़िगर, गोरा रंग और सुंदर चेहरा। यही तो परिभाषित करते हैं एक स्त्री के सौंदर्य को।
ठहरिए!
ज़रा सोचिए, कि क्या सच में यही सुंदरता है। अभी तो अन्वेषण हमने शुरू ही किया है। । संभव है, ये आपके सौंदर्य के पैमाने पे खरी उतरें.,
ये हर उन महिलाओं की तस्वीर हैं जो अपने लिए शाही घोड़े पे बैठ कर आए किसी सुंदर राजकुमार की नहीं, बल्कि अपने सुंदर देश के सपने देखती हैं। किसी ए-सी कैबिन ( कार्यालय या घर में) बैठने के बजाए, ये अपना यौवन देश की मिट्टी में मिला देना चाहतीं हैं। अब भी हमारे सौंदर्य की शर्तें वहीं हैं या..
ख़ैर ये पूर्णतः आप पे निर्भर है। थोड़ा अन्वेषण और करें, अंततः बात सौंदर्य की जो है, उस पर भी एक स्त्री के सौंदर्य की।
इन्हें तो आप जानते ही होंगे, लक्ष्मी अग्रवाल( अंतरराष्ट्रीय महिला साहस पुरस्कार), जो एक एसिड अटैक सर्वाइवर (acid attack survivor) हैं। जिनपे 16- वर्ष की आयु में (वर्ष- 2005) पे एसिड अटैक हुआ था। ये एक स्त्री हैं, और आक्रमण इनके' सौंदर्य' पे हुआ था (माफ़ कीजिए, हमला इनके बाह्य सौंदर्य पे हुआ था)। अपने अस्तित्व के एक हिस्से को, अपनी सुन्दरता को यूं मिटते देख, ये आत्महत्या जैसे कमज़ोर क़दम उठाने के बजाए ( जिससे सिर्फ़ कुछ दिनों के लिए लोगों की सहानुभूति मिलती, और कुछ नहीं) लड़ीं और अपने दोषियों को सज़ा दिलवाई। और फिर क्यों नहीं, वो स्त्री जो पुरुषों के जीत का कारण बने, ख़ुद कैसे हार जाती?
तो 'यही' वक्त है सौंदर्य को परिभाषित करने का, कम से कम अपने लिए। इसीलिए तो कहा है मैंने कि स्त्रियों से सौंदर्य है, सौंदर्य से स्त्रियां नहीं। आपको क्या लगता है, अवश्य बताइएगा। आपकी प्रतिक्रिया 'इस विषय पर' हीरे से कम नहीं।
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