बड़ी स्क्रीन , 3-D ग्लासेस ,हाथ में पॉपकॉर्न और कोल्डड्रिंक लेकर मूवी देखना भला किसे पसंद नहीं।हम सभी अकसर ही अपने परिवार या दोस्तों के साथ सिनेमा हॉल जाते हैं या फिर कभी न कभी तो ज़रूर गए होंगे। हमें वहां मज़ा भी बहुत आता है। लेकिन आज हम आपको इन सिनेमा घरों के कुछ ऐसे सच बताने जा रहे हैं जिसे जानने के बाद आप भी चौंक जाएंगे। चलिए जानते हैं :-
१.ये तो आप जानते ही होंगे कि सिनेमा घरों में आपको सीसीटीवी कैमरे की निगरानी में रखा जाता है।लेकिन ये आपकी सुरक्षा से कहीं अधिक उन लोगों को पकड़ने के लिए लगाए जाते हैं जो फिल्मों को चोरी-छुपे रिकॉर्ड करके इंटरनेट पर डाल कर इन फिल्मों की पायरेसी करते हैं,जिसमें कई बार सिनेमा हॉल के कर्मचारियों की भी मिलीभगत होती है । पायरेसी से तो हम सभी वाक़िफ हैं। जिसका सीधा असर फिल्म की कमाई पर पड़ता है ।आप में से कई लोगों ने यू-ट्यूब पे फिल्म देखते वक्त हॉल में फिल्म देखने आए दर्शकों की हलचल सुनी या देखी होगी,जो फिल्मों की पायरेसी का ही सबूत है।
२.सिनेमा हॉल की भीड़ या हाउसफुल का बोर्ड देखकर आपको लगता होगा कि इन सिनेमा हॉल के मालिकों को कितना फ़ायदा होता होगा । लेकिन यहां हम आपको बता दें कि इन्हें यहां लगने वाली फिल्मों से बहुत ज़्यादा फ़ायदा नहीं होता ( किसी भी फिल्म के रिलीज़ होने पर इन्हें टिकट बिक्री पे केवल १०-२५% ही मिलता है) और वो भी स्टाफ और मेंटेनेंस ( जैसे एसी, फर्नीचर आदि) में खर्च हो जाते हैं।।हालांकि वक़्त के साथ इनका प्रॉफिट मार्जिन बढ़ता जाता है।आपने देखा होगा कि कई सिनेमा हॉल सुपरहिट फिल्मों को ३-४ महीने बाद भी लगाए रखते हैं क्योंकि तब इनका प्रॉफिट मार्जिन ७५-८०% तक बढ़ जाता है । इनकी मेन कमाई का कारण तो सिनेमा घरों और मल्टीप्लेक्सेस में बिकने वाले खाने- पीने के चीज़े हैं ( जिनपर ये कम से कम ८०-९० % तक टैक्स वसूलते हैं) । उदाहरण के लिए- जो पॉपकॉर्न आप बाहर २५ -३० रुपए में मिलते हैं उन्हीं पॉपकॉर्न को यहां २५०-३०० रुपए में बेचा जाता है।और आपको मजबूरन उसे ही खरीदना पड़ता है।
३. अगर आपको लगता है कि इन मल्टीप्लेक्सेस में बिकने वाली खाने पीने की चीज़े,जिन्हें आप महंगे दामों पे खरीदते हैं, ताज़ी और फ्रेश होती हैं, तो रुकिए। ये ज़रूरी नहीं।कई बार ये आपको कल की बची हुई चीज़े बेच देते हैं। जैसे बासी पॉपकॉर्न। और इन्हें बनाते वक़्त साफ़ सफ़ाई का कितना ध्यान रखा गया होगा, कहना मुश्किल है।
४.इसके साथ ही आजकल कई फिल्में 3-D में रिलीज़ होने लगीं हैं,जिन्हें देखने के लिए आपको इन सिनेमा हॉल वालों की तरफ़ से 3-D ग्लासेस दिए जाते हैं। पर हममें से कई लोगों को इन 3-D फिल्मों को देखने के बाद सिरदर्द की शिकायत होती है। क्योंकि ये 3-D हमरे दिमाग़ की कार्यशक्ति पर सीधे असर डालती है।इसके साथ ही जब भी आप इन ग्लासेस को लगाएं तो ये ज़रूर देख लें कि वो साफ़ हो। क्योंकि आप ये नहीं जानते कि आप से पहले इसे किसने लगाया था और उसके बाद इसे साफ़ किया गया होगा भी या नहीं।
५. किसी भी फिल्म के शुरु होने से पहले आपको कई तरह के एड्स दिखाए जाते हैं। दरअसल इसके पीछे भी उनका एक मकसद होता है कि : या तो आप इन फ़ालतू के एड्स से बोर हो के ख़ुद ही वहां के फूड एरिया से कुछ ख़रीद लाएंगे या खाने की चीजों के एड्स देखकर आप अपने आप को रोक ही नहीं पाएंगे और कुछ न कुछ खाने के लिए ख़रीद ही लाएंगे ।
६.एक ज़रूरी बात और,जब भी आप किसी सिनेमा हॉल में जाएं,तो बैठने से पहले अपनी सीट अच्छे से जांच ले कि कहीं कोई चूइंग गम तो आपकी सीट पे नहीं चिपकी।क्योंकि अक्सर ही दो शोज़ के बीच में कर्मचारियों को हॉल की सफाई के लिए काफी कम ही वक़्त मिल पाता है ( एक बार यूं ही किसी दर्शक के सीट के नीचे लोडेड डायपर मिला था)।
७. हम जानते हैं कि कई फिल्मों को रिलीज़ होने से पहले - सर्टिफिकेट दिया जाता है जिसका सीधा मतलब ये होता है कि इस फिल्म को सिर्फ १८ या उससे अधिक उम्र के ही लोग देख सकते हैं।लेकिन अक्सर १८ साल से कम उम्र के बच्चे किसी बड़े के ज़रिए टिकट खरीद लेते हैं और शान से सिनेमा हॉल में बैठकर इन फिल्मों का आनंद लेते हैं। दुख की बात तो ये है कि लोग इन बातों को जान के भी अनजान बने रहते हैं।
तो ये थीं सिनेमा हॉल से जुड़ी कुछ ज़रूरी बातें। उम्मीद है, ये बातें आपको अच्छी और रोचक लगीं होंगी।
१.ये तो आप जानते ही होंगे कि सिनेमा घरों में आपको सीसीटीवी कैमरे की निगरानी में रखा जाता है।लेकिन ये आपकी सुरक्षा से कहीं अधिक उन लोगों को पकड़ने के लिए लगाए जाते हैं जो फिल्मों को चोरी-छुपे रिकॉर्ड करके इंटरनेट पर डाल कर इन फिल्मों की पायरेसी करते हैं,जिसमें कई बार सिनेमा हॉल के कर्मचारियों की भी मिलीभगत होती है । पायरेसी से तो हम सभी वाक़िफ हैं। जिसका सीधा असर फिल्म की कमाई पर पड़ता है ।आप में से कई लोगों ने यू-ट्यूब पे फिल्म देखते वक्त हॉल में फिल्म देखने आए दर्शकों की हलचल सुनी या देखी होगी,जो फिल्मों की पायरेसी का ही सबूत है।
२.सिनेमा हॉल की भीड़ या हाउसफुल का बोर्ड देखकर आपको लगता होगा कि इन सिनेमा हॉल के मालिकों को कितना फ़ायदा होता होगा । लेकिन यहां हम आपको बता दें कि इन्हें यहां लगने वाली फिल्मों से बहुत ज़्यादा फ़ायदा नहीं होता ( किसी भी फिल्म के रिलीज़ होने पर इन्हें टिकट बिक्री पे केवल १०-२५% ही मिलता है) और वो भी स्टाफ और मेंटेनेंस ( जैसे एसी, फर्नीचर आदि) में खर्च हो जाते हैं।।हालांकि वक़्त के साथ इनका प्रॉफिट मार्जिन बढ़ता जाता है।आपने देखा होगा कि कई सिनेमा हॉल सुपरहिट फिल्मों को ३-४ महीने बाद भी लगाए रखते हैं क्योंकि तब इनका प्रॉफिट मार्जिन ७५-८०% तक बढ़ जाता है । इनकी मेन कमाई का कारण तो सिनेमा घरों और मल्टीप्लेक्सेस में बिकने वाले खाने- पीने के चीज़े हैं ( जिनपर ये कम से कम ८०-९० % तक टैक्स वसूलते हैं) । उदाहरण के लिए- जो पॉपकॉर्न आप बाहर २५ -३० रुपए में मिलते हैं उन्हीं पॉपकॉर्न को यहां २५०-३०० रुपए में बेचा जाता है।और आपको मजबूरन उसे ही खरीदना पड़ता है।
३. अगर आपको लगता है कि इन मल्टीप्लेक्सेस में बिकने वाली खाने पीने की चीज़े,जिन्हें आप महंगे दामों पे खरीदते हैं, ताज़ी और फ्रेश होती हैं, तो रुकिए। ये ज़रूरी नहीं।कई बार ये आपको कल की बची हुई चीज़े बेच देते हैं। जैसे बासी पॉपकॉर्न। और इन्हें बनाते वक़्त साफ़ सफ़ाई का कितना ध्यान रखा गया होगा, कहना मुश्किल है।
४.इसके साथ ही आजकल कई फिल्में 3-D में रिलीज़ होने लगीं हैं,जिन्हें देखने के लिए आपको इन सिनेमा हॉल वालों की तरफ़ से 3-D ग्लासेस दिए जाते हैं। पर हममें से कई लोगों को इन 3-D फिल्मों को देखने के बाद सिरदर्द की शिकायत होती है। क्योंकि ये 3-D हमरे दिमाग़ की कार्यशक्ति पर सीधे असर डालती है।इसके साथ ही जब भी आप इन ग्लासेस को लगाएं तो ये ज़रूर देख लें कि वो साफ़ हो। क्योंकि आप ये नहीं जानते कि आप से पहले इसे किसने लगाया था और उसके बाद इसे साफ़ किया गया होगा भी या नहीं।
५. किसी भी फिल्म के शुरु होने से पहले आपको कई तरह के एड्स दिखाए जाते हैं। दरअसल इसके पीछे भी उनका एक मकसद होता है कि : या तो आप इन फ़ालतू के एड्स से बोर हो के ख़ुद ही वहां के फूड एरिया से कुछ ख़रीद लाएंगे या खाने की चीजों के एड्स देखकर आप अपने आप को रोक ही नहीं पाएंगे और कुछ न कुछ खाने के लिए ख़रीद ही लाएंगे ।
६.एक ज़रूरी बात और,जब भी आप किसी सिनेमा हॉल में जाएं,तो बैठने से पहले अपनी सीट अच्छे से जांच ले कि कहीं कोई चूइंग गम तो आपकी सीट पे नहीं चिपकी।क्योंकि अक्सर ही दो शोज़ के बीच में कर्मचारियों को हॉल की सफाई के लिए काफी कम ही वक़्त मिल पाता है ( एक बार यूं ही किसी दर्शक के सीट के नीचे लोडेड डायपर मिला था)।
७. हम जानते हैं कि कई फिल्मों को रिलीज़ होने से पहले - सर्टिफिकेट दिया जाता है जिसका सीधा मतलब ये होता है कि इस फिल्म को सिर्फ १८ या उससे अधिक उम्र के ही लोग देख सकते हैं।लेकिन अक्सर १८ साल से कम उम्र के बच्चे किसी बड़े के ज़रिए टिकट खरीद लेते हैं और शान से सिनेमा हॉल में बैठकर इन फिल्मों का आनंद लेते हैं। दुख की बात तो ये है कि लोग इन बातों को जान के भी अनजान बने रहते हैं।
तो ये थीं सिनेमा हॉल से जुड़ी कुछ ज़रूरी बातें। उम्मीद है, ये बातें आपको अच्छी और रोचक लगीं होंगी।
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